You are currently viewing जगन्नाथ रथ यात्रा: आस्था, परंपरा और भक्ति का पर्व

जगन्नाथ रथ यात्रा: आस्था, परंपरा और भक्ति का पर्व

  • Post author:

भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर पर्व में श्रद्धा, संस्कृति और सामाजिक एकता की झलक मिलती है। ऐसा ही एक भव्य और ऐतिहासिक त्योहार है — जगन्नाथ रथ यात्रा। यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से विशेष है, बल्कि इसकी भव्यता और भावनात्मक जुड़ाव इसे विश्व स्तर पर प्रसिद्ध बनाता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा क्या है?

जगन्नाथ रथ यात्रा उड़ीसा राज्य के पुरी नगर में स्थित जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी एक विशाल धार्मिक यात्रा है। इसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रथों में बैठाकर मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है।

यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (जून-जुलाई माह) में आयोजित होती है और लाखों श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं।

तीन रथों की विशेषता

हर देवता के लिए एक अलग रथ बनाया जाता है:

  1. भगवान जगन्नाथ का रथ — नंदिघोष
    • ऊँचाई: लगभग 45 फीट
    • पहिए: 16
    • रंग: लाल और पीला
  2. बलभद्र जी का रथ — तालध्वज
    • ऊँचाई: लगभग 44 फीट
    • पहिए: 14
    • रंग: लाल और हरा
  3. सुभद्रा जी का रथ — दर्पदलन
    • ऊँचाई: लगभग 43 फीट
    • पहिए: 12
    • रंग: लाल और काला

इस यात्रा का महत्व

  • मान्यता है कि रथ यात्रा में भाग लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • इसे लोक और शास्त्र दोनों का संगम माना जाता है।
  • यह यात्रा सभी जाति-धर्म के लोगों को एक साथ जोड़ती है।
  • पुरी की रथ यात्रा को देखने दुनियाभर से पर्यटक आते हैं।

कुछ रोचक तथ्य

  • भगवान जगन्नाथ की मूर्ति लकड़ी की होती है और हर 12 से 19 साल में उसका नवकलेवर (मूर्ति परिवर्तन) होता है।
  • रथ खींचने को पुण्य का कार्य माना जाता है, और इसमें लाखों लोग भाग लेते हैं।
  • इस यात्रा को “धरती पर भगवान की सैर” कहा जाता है।

निष्कर्ष

जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आस्था, समर्पण और एकता का प्रतीक है। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने वाला पर्व है। यदि आपने कभी इस यात्रा में हिस्सा नहीं लिया, तो जीवन में एक बार पुरी की रथ यात्रा का अनुभव जरूर करें।